Wednesday, December 18, 2013

बचपन



बचपन का वो वक़्त भूले ना भुलाता है,

वो आँगन का झूला आज भी हमें बुलाता है।


कहने को तो बहुत बड़े हो गए हैं हम,

लेकिन जाने क्यूँ मन बार बार बच्चा बन जाता है।


जब सभी अपने थे कोई गैर नहीं था,

राम और रहीम में कोई बैर नहीं था ।


हाथी घोड़े के खेल में जब वक़्त गुजर जाता था,

चार आने का सिक्का भी तब खज़ाना नजर आता था ।


जब हँसने के लिए कोई वजह नहीं थी,

जिंदगी की किताब में गम की कोई जगह नहीं थी ।


सपने देखने पर कोई पाबन्दी नहीं थी,

खुशियाँ खरीदने की तब कोई मंडी नहीं थी ।


मोहल्ले के सभी घर अपने हुआ करते थे,

क्या दिन थे वो भी, जब हम बच्चे हुआ करते थे ।

मधुर

She & Chaos

I often wonder was it actually her or her capability to make chaos that draws me closer to her. 
didn't understand then and I don’t understand even now that both are the sides of a same coin. I love chaos and I love her. In the end it’s just the same thing.


By: Madhur Shailesh Dwivedi