Wednesday, April 29, 2020

कसक

जिस घर से हुई थी इब्तिदा हमारी, जिस मोहल्ले से साबका था
हम शहर हो गए तो साथ छूट सा गया उसका ।

हमारी तमन्नाओं की तासीर वक़्त को बहा ले गयी कहीं दूर
पीछे छूट गया वो चक्कर ,नीम का पेड़ और कुएं की पाल, 
कहीं खो से गये वो ताश के पत्ते, वो कहानियां और पठाल।

आज लौटे हैं तो एक खामोशी है हर तरफ, सूने पड़े हैं चौपाल
ना है कोई हंसी, शोर शराबा, या कोई पूछने वाला हमारा हाल ।

सिर्फ एक सूखा पेड़ खड़ा है मोरसली का मैदान में,
अपनी गली, मोहल्ले से अब यही राबता बाकी है ।

मधुर