Tuesday, December 8, 2020

सराय





आजकल जब भी इस शहर को आता हूँ,
अपने आईने से भी नज़रें चुराता हूँ ।

नीम पर बैठी वो चिड़िया जैसे ताने कसती है,
मैं बस खामोशी से सुनता जाता हूँ ।

पुराने कुछ किस्से दबाये बैठा हूँ ज़हन में,
बस उन्हें याद करके वक़्त बिताता हूँ ।

दोस्त - दुश्मन कौन थे याद नहीं अब,
हर बशर से दुआ सलाम करता जाता हूँ ।

जो घर अपने थे, उनकी खिड़कियाँ बंद रहती है,
मैं बस दीवारों से मिलकर लौट आता हूँ ।

ये शहर, ये गलियाँ अब पराये हो चुके,
मैं भी सराय समझ कर एक रात रुक जाता हूँ ।

मधुर द्विवेदी

No comments:

Post a Comment