बहुत हो लिए सुभट सरल,
बहुत सह लिए वाक्य गरल,
किन्तु, स्थिती बड़ी विकट है,
अब अंतिम समय निकट है ।
वसुधा ऐसी डोली है ।
त्राहिमाम अब बोली है ।
कैसा आतंक मचाने को
निकली असुरों की टोली है ।
ऐसे नरमांस खींच रहे हैं,
भूखे सियार चीख रहे हैं ।
छिन्न भिन्न जहां लोकतंत्र है,
छल-कपट ही जिनका मूल मंत्र है ।
वो आज द्वार हमारे आये हैं।
साथ सेना नर पिशाचों की लाये हैं ।
भारत वर्ष के मस्तक पर,
टिड्डी दल से छाए हैं ।
कर चुके कितने प्रयत्न,
पर अब होगा ऐसा अंत
मधु कैटभ भी आये थे,
क्या दुर्गा से बच पाए थे ।
चलेगा जब भैरव का शूल,
सर्वनाश होगा निर्मूल,
देख यही महामाया है,
या अब भी दम्भ समाया है ।
जिसको मिटा जगत न पाया है
वहीं तू मृत्युवरण को आया है ।
अंधकार में बहुत रह लिया,
आ तुझको सूर्य दिखाता हूं,
दिनकर के शब्दों में मैं,
सत्य अटल बताता हूँ
कि याचना नहीं अब रण होगा,
जीवन जय या कि मरण होगा ।
भयभीत, ललकार के आगे
वीरों के हर वार के आगे
होंगे नतमस्तक ये कायर,
भारत के पुरुषार्थ के आगे ।
भारत के पुरुषार्थ के आगे ।
भारत के पुरुषार्थ के आगे ।
मधुर द्विवेदी
(लद्दाख पर चीन के साथ हुए हमारे वीर सैनिकों के संघर्ष के संदर्भ में)
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