Friday, October 22, 2021

वो और मैं






वो कृष्ण है,
मैं सुदामा हूँ

वो खुदा है,
मैं हज़रत जमा हूँ ।

वो जीसस है,
मैं जूडस हूँ ।

वो अनहद है,
में सीमित हूँ

वो जाविद है,
मैं बस, जीवित हूँ ।

ये सब उसी की माया है,
मिट्टी की ये मेरी काया है ।
फिर भी चंद टुकड़ों की खातिर
मैंने क्या ही पाया है ।

इन ज़मीन के टुकड़ों पर,
हक़ जमाता क्यों हूँ ?
इन कागज़ के पुर्ज़ों पर,
ईमान लुटाता क्यों हूँ ?

उससे ही सब कुछ है,
उसका ही सब कुछ है

आया था खाली हाथ,
जाना खाली हाथ ही है।
ये भूल जाता क्यों हूँ ?

मधुर द्विवेदी

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