Thursday, July 29, 2021

अहसास





अकेलेपन का ये अहसास यहाँ,
कुछ इस क़दर तामीर हो गया है ।

उनको देखकर हूक उठती नहीं अब,
ये दिल भी जैसे कश्मीर हो गया है

जिनके नाम का कभी कलमा पढ़ा करते थे,
अब उनका ज़िक्र भी तकसीर हो गया है ।

वक़्त की बेरुखी का आलम देखिए ज़नाब,
वो चेहरा अब एक टूटी तस्वीर हो गया है ।

Wednesday, July 28, 2021

इंक़लाब







इंक़लाब भी जैसे जुलाब हो गया है आजकल,
किसी को कहीं भी लग जाता है।

2-4 बड़ी बड़ी पींगे मारता है,
फिर अपने आप ठंडा पड़ जाता है।

कहने को सब भगतसिंह की विरासत हैं,
लेकिन खून में उबाल 2 पेग के बाद ही आता है ।

और जब बारी आती है जेल जाने की,
तो कोई नेता रिश्तेदार निकल आता है ।

अपने लहू से इंक़लाब लिखने की बाते करता था,
वो लड़का आज ट्रेन की पटरी पर कट जाता है ।

और जो कभी चोरों का सरदार हुआ करता था,
वही आज सियासी सिपहसालार बन जाता है ।

सब देखता है, सुनता है चुपचाप,
और फिर इंक़लाब भी सो जाता है ।

मधुर द्विवेदी

Friday, July 9, 2021

साथ






साथ छूटे को मुद्दतें बीती,
मिलने का वादा पुराना हो गया ।

ईद का चांद भी दिख जाता है
साल में दो बार ।
लेकिन आपका दीदार किए,
एक ज़माना हो गया ।

एक दौर था जब, आंखों से सही
पूछ लिया करते थे हमारा हाल ।
अब ये बहाना भी खैर,
एक बहाना हो गया ।

मधुर द्विवेदी

पहलू





कुछ लोग कहते हैं ओल्ड सोल,
कुछ कहते हैं मैन चाइल्ड ।

कैसे बताऊं दोनों को,
की गंगाधर ही शक्तिमान है ।

और दीवारों पर एशियन पेंट के साथ,
ये वही पुराना मकान है ।

मधुर द्विवेदी

ओल्ड सोल - Old Soul
मैन चाइल्ड - Man Child

टोबा टेक सिंह






कुकुरमुत्तों की तरह उग आए हैं,
कई बिशनसिंह यहां पर ।
उनमें से एक मैं भी हूँ,
ढूंढ रहा हूँ अपना टोबा टेक सिंह ।

कभी घूमता हूँ गोल गोल
धर्म की चक्की पर,
अटक जाता हूँ कभी
महंगाई की सुई पर ।
राह फिर भी नज़र आती नहीं
तो कदमों के नीचे की ज़मीन को ही
मान लेता हूँ टोबा टेक सिंह ।
और खड़ा रहता हूँ दिन रात,
अच्छे दिनों को याद करते हुए ।

मेरे पागलपन पर,
दोनों ओर के पहरेदार हंस रहे हैं
जी भर कर फब्तियां कस रहे हैं ।
मिज़ाज़ के भी दोनों बड़े सख़्त हैं,
जानते हैं कि 2024 में अभी वक़्त है ।

लेकिन भूल जाते हैं ये लोग
कि मैंने हार नहीं मानी है ।
भले मिटा दिया हो इन्होंने
कागज़ के पन्नों से पर,
ज़िंदा है वजूद टोबा टेक सिंह का,
मेरा यकीन जब तक बाकी है ।

और एक दिन ये पागलपन मेरा
इंक़लाब जरूर लाएगा,
उस दिन हर एक बिशनसिंह,
अपने गाँव ज़रूर पहुंच जाएगा ।

मधुर द्विवेदी

(आदरणीय दादाजी डॉ. चंद्रकांत द्विवेदी जी को समर्पित)

सआदत हसन मंटो की कहानी टोबा टेक सिंह से प्रेरित

Friday, July 2, 2021

खरीद लिए हैं





खरीद लिए हैं बाजार,
खरीद लिए हैं अखबार ।

घर बैठे फैल रहा है,
डर बेचने का व्यापार ।

2 रुपये में ट्वीट बिक रही है,
2 करोड में सीट मिल रही है ।

चलो कहीं तो मिल रहा है,
लोगों को रोजगार ।

थोड़ा सा हो रहा है,
तो होता रहे अनाचार ।

मधुर द्विवेदी