Tuesday, December 10, 2019

ये जाने वाला साल


ये जाने वाला साल कुछ ये कर गया,
कि आज फिर जी कुछ लिखने को मचल गया ।

ये जाने वाला साल फिर कुछ कर गया,
कुछ अपने ले गया कुछ सपने दे गया ।

सपने अपनों से फिर मिल जाने के,
सपने दूरियों के पास आने के 

एक दूसरे की गलतियों को भुलाने के,
भूल न सकें तो माफ करने के ।

आने वाले साल में शायद कुछ नया कर पाएं,
जितना प्रेम दिल मे है , शायद सबको दिखा पाएं,

इस आने वाले साल में सबको खुशी मिले,
गम सबके कम हों, सबको जिंदादिली मिले ।

2020 में उन्नीस बीस कोई न रहे , सब बराबर हों,
एक दूसरे की खुशी में , गम में सब मुत्तहिद हों ।

दुआ बस यही है कि आने वाला साल सबको सलामत रखे,
घर और बाहर के माहौल को जन्नत रखे ।

इस आने वाले साल में जो बिछड़े थे वो मिल जाएं ,
और जो पराये थे वो भी अपने हो जाएं ।

जय श्री महाकाल, आमीन ।

मधुर द्विवेदी । 

तकरार





किस्से कहानियों में सिमट भर गई है,
क्यों आजकल पहले सी मोहब्बत नही होती ।

कुछ इस कदर बढ़ गया है कुफ्र का आलम,
अंधेरा बढ़ता जाता है, सहर नहीं होती ।

हम और मैं का फर्क बरकरार रहता है,
क्यों दर्द के बिना अपनी रहगुज़र नही होती।

मोहब्बत पर महल बना करते थे पहले,
क्यों कर अब उनमे कोई बसर नही होती ।

जोड़ियाँ जो बना करती थी जन्मों के लिए,
क्यों कर अब लम्हों की भी हमसफर नहीं होती।

जिनकी मुस्कानों से रोशन हुआ करते थे आईने,
क्यों अब उनकी तस्वीर पर नज़र नहीं टिकती ।

मधुर

समुद्र मंथन

फिर हो रहा है एक समुद्र मंथन आज,
लेकिन इस बार देव -दानव में कोई फर्क नही है।
सब की अपनी अपनी कामना है, लालसा है,
सब बाट जोह रहे हैं अपने प्रसाद की,
कब मिले, तो उदरस्थ करें, और आने घर चलें ।
हलाहल विष पीने के लिए नहीं है कोई महादेव इस बार,
तो पकड़ लाये हैं वो किसी को अवतार बता कर ।
में पूछ रहा हूँ उससे की रे मूर्ख पता भी है
ये हलाहल है, विष है, नाश कर देगा तुम्हारा
हंसा वो, और कहने लगा कि गरीबी के दंश से बड़ा नहीं है ।
नशा हो सकता है लेकिन नाश नहीं ।
मैने पूछा है कौन तू, कहानी क्या है तेरी, तो बस ये बोला
कहानी तो है पर कहने से लाचार हूँ, 
में जनता हूँ, मजदूर हूँ , बेगार हूँ ।

ग्रे

काला सफेद सब एक ही सा है,
बदनीयत भी यहां नेक ही सा है ।
काशी और काबा में फर्क करता है,
ये खलीफा भी औरंगज़ेब ही सा है।
तलवार के आगे सच झुकता है,
ये दौर भी कुछ और ही सा है ।
खुद सोकर हमसे कहता है जागते रहो,
ये चौकीदार भी चोर ही सा है ।

मधुर

दिल्ली

क्या करें कि अब कोई राह नज़र नहीं आती,
धूप और धुएँ का गुबार हर तरफ है,
छांव भर नज़र नहीं आती,
सांसें देते थे जो दरख्त,
उन्हें कबका काट दिया हमने,
अब घुट घुट के जी रहे हैं,
मौत बर नहीं आती ।
सुना था कभी कि दिल्ली का अपना दिल है,
लेकिन आज कहीं धड़कन नज़र नहीं आती ।

मधुर

तुम

कहते हैं मोहब्बत की कोई हद्द नही होती, लेकिन अगर होगी तो तुम्हारे नाम पर आकर खत्म होगी ।
कहते हैं चाहत की कोई शक्ल नहीं होती, लेकिन अगर हुई तो तुमसे खूबसूरत नही होगी ।
कहते हैं इश्क़ सिर्फ एक बार होता है, लेकिन तुम्हे देख कर इश्क़ को भी मुझसे रश्क़ सा होगा ।

मधुर

कृति

ख्वाहिशों को कोई नाम दूं अगर तो तुम हो,
तूफाँ में फंसी मेरी कश्ती को मिला वो किनारा तुम हो।
जुनून के परे पहुंचा दे जो चाहत को वो असर तुम हो,
जिसे देख कर रूह को सुकून मिल जाये वो मंजर तुम हो ।
जिसे महसूस करके आ जाये हिम्मत वो हौसला तुम हो,
गर खता करू तो चट्टान बन जाये वो फैसला तुम हो ।
अब इससे आगे और क्या कहूँ मेरे हमसफर,
मेरी जिंदगी को जिसने बदल दिया वो फलसफा तुम हो ।
#मधुरिका