किस्से कहानियों में सिमट भर गई है,
क्यों आजकल पहले सी मोहब्बत नही होती ।
कुछ इस कदर बढ़ गया है कुफ्र का आलम,
अंधेरा बढ़ता जाता है, सहर नहीं होती ।
हम और मैं का फर्क बरकरार रहता है,
क्यों दर्द के बिना अपनी रहगुज़र नही होती।
मोहब्बत पर महल बना करते थे पहले,
क्यों कर अब उनमे कोई बसर नही होती ।
जोड़ियाँ जो बना करती थी जन्मों के लिए,
क्यों कर अब लम्हों की भी हमसफर नहीं होती।
जिनकी मुस्कानों से रोशन हुआ करते थे आईने,
क्यों अब उनकी तस्वीर पर नज़र नहीं टिकती ।
क्यों आजकल पहले सी मोहब्बत नही होती ।
कुछ इस कदर बढ़ गया है कुफ्र का आलम,
अंधेरा बढ़ता जाता है, सहर नहीं होती ।
हम और मैं का फर्क बरकरार रहता है,
क्यों दर्द के बिना अपनी रहगुज़र नही होती।
मोहब्बत पर महल बना करते थे पहले,
क्यों कर अब उनमे कोई बसर नही होती ।
जोड़ियाँ जो बना करती थी जन्मों के लिए,
क्यों कर अब लम्हों की भी हमसफर नहीं होती।
जिनकी मुस्कानों से रोशन हुआ करते थे आईने,
क्यों अब उनकी तस्वीर पर नज़र नहीं टिकती ।
मधुर
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