Tuesday, December 10, 2019

समुद्र मंथन

फिर हो रहा है एक समुद्र मंथन आज,
लेकिन इस बार देव -दानव में कोई फर्क नही है।
सब की अपनी अपनी कामना है, लालसा है,
सब बाट जोह रहे हैं अपने प्रसाद की,
कब मिले, तो उदरस्थ करें, और आने घर चलें ।
हलाहल विष पीने के लिए नहीं है कोई महादेव इस बार,
तो पकड़ लाये हैं वो किसी को अवतार बता कर ।
में पूछ रहा हूँ उससे की रे मूर्ख पता भी है
ये हलाहल है, विष है, नाश कर देगा तुम्हारा
हंसा वो, और कहने लगा कि गरीबी के दंश से बड़ा नहीं है ।
नशा हो सकता है लेकिन नाश नहीं ।
मैने पूछा है कौन तू, कहानी क्या है तेरी, तो बस ये बोला
कहानी तो है पर कहने से लाचार हूँ, 
में जनता हूँ, मजदूर हूँ , बेगार हूँ ।

No comments:

Post a Comment