हंसी - खुशी,
पहेलियां, अठखेलियां,
पोहे - जलेबियाँ,
आम-रस और सिवईयां,
प्यार - तकरार,
मान - मनुहार,
इज़हार - इकरार,
इन्ही सब से मिलकर बनता है,
तुम्हारा और मेरा इतवार ।
मधुर द्विवेदी
Madhurbyheart
My feelings which are unspoken, unshared, unwritten..
Sunday, June 5, 2022
Wednesday, May 11, 2022
Wednesday, November 3, 2021
दीपावली
दीप का प्रकाश हो,
तिमिर का नाश हो,
आप के घर-द्वार में,
मां लक्ष्मी का वास हो ।
अंतःकरण निर्मल हो,
चित्त को शुद्धि मिले,
श्री गणेश की कृपा से,
सभी को सद्बुद्धि मिले ।
जीवन में ज्ञान का संचार हो,
हर भय-संशय से मुक्त हों,
मां सरस्वती की कृपा से,
सभी कलाओं से आप युक्त हों।
हमारी ओर से दीपावली की शुभकामना स्वीकार कीजिये,
अपनी ओर से आशीष और सद्भावना की मीठी भेंट दे दीजिये ।
तिमिर का नाश हो,
आप के घर-द्वार में,
मां लक्ष्मी का वास हो ।
अंतःकरण निर्मल हो,
चित्त को शुद्धि मिले,
श्री गणेश की कृपा से,
सभी को सद्बुद्धि मिले ।
जीवन में ज्ञान का संचार हो,
हर भय-संशय से मुक्त हों,
मां सरस्वती की कृपा से,
सभी कलाओं से आप युक्त हों।
हमारी ओर से दीपावली की शुभकामना स्वीकार कीजिये,
अपनी ओर से आशीष और सद्भावना की मीठी भेंट दे दीजिये ।
मधुर एवं समस्त द्विवेदी परिवार की ओर से दीपावली की मंगलकामनाएं
Labels:
deepawali,
diwali,
festival,
festivities,
दीवाली,
दीवाली कविता
Wednesday, October 27, 2021
Friday, October 22, 2021
वो और मैं
मैं सुदामा हूँ
वो खुदा है,
मैं हज़रत जमा हूँ ।
वो जीसस है,
मैं जूडस हूँ ।
वो अनहद है,
में सीमित हूँ
वो जाविद है,
मैं बस, जीवित हूँ ।
ये सब उसी की माया है,
मिट्टी की ये मेरी काया है ।
फिर भी चंद टुकड़ों की खातिर
मैंने क्या ही पाया है ।
इन ज़मीन के टुकड़ों पर,
हक़ जमाता क्यों हूँ ?
इन कागज़ के पुर्ज़ों पर,
ईमान लुटाता क्यों हूँ ?
उससे ही सब कुछ है,
उसका ही सब कुछ है
आया था खाली हाथ,
जाना खाली हाथ ही है।
ये भूल जाता क्यों हूँ ?
मधुर द्विवेदी
Saturday, September 25, 2021
रास्ता
अकेले बहुत पी चुका हूँ मैं,
कि आज साक़ी को पिलाया जाय ।
मुकम्मल अब हुआ है रासता मेरा,
चल ज़िन्दगी, तुझे भी आज़माया जाय।
Thursday, July 29, 2021
अहसास
कुछ इस क़दर तामीर हो गया है ।
उनको देखकर हूक उठती नहीं अब,
ये दिल भी जैसे कश्मीर हो गया है
जिनके नाम का कभी कलमा पढ़ा करते थे,
अब उनका ज़िक्र भी तकसीर हो गया है ।
वक़्त की बेरुखी का आलम देखिए ज़नाब,
वो चेहरा अब एक टूटी तस्वीर हो गया है ।
Wednesday, July 28, 2021
इंक़लाब
किसी को कहीं भी लग जाता है।
2-4 बड़ी बड़ी पींगे मारता है,
फिर अपने आप ठंडा पड़ जाता है।
कहने को सब भगतसिंह की विरासत हैं,
लेकिन खून में उबाल 2 पेग के बाद ही आता है ।
और जब बारी आती है जेल जाने की,
तो कोई नेता रिश्तेदार निकल आता है ।
अपने लहू से इंक़लाब लिखने की बाते करता था,
वो लड़का आज ट्रेन की पटरी पर कट जाता है ।
और जो कभी चोरों का सरदार हुआ करता था,
वही आज सियासी सिपहसालार बन जाता है ।
सब देखता है, सुनता है चुपचाप,
और फिर इंक़लाब भी सो जाता है ।
मधुर द्विवेदी
Friday, July 9, 2021
साथ
साथ छूटे को मुद्दतें बीती,
मिलने का वादा पुराना हो गया ।
ईद का चांद भी दिख जाता है
साल में दो बार ।
लेकिन आपका दीदार किए,
एक ज़माना हो गया ।
एक दौर था जब, आंखों से सही
पूछ लिया करते थे हमारा हाल ।
अब ये बहाना भी खैर,
एक बहाना हो गया ।
मधुर द्विवेदी
मिलने का वादा पुराना हो गया ।
ईद का चांद भी दिख जाता है
साल में दो बार ।
लेकिन आपका दीदार किए,
एक ज़माना हो गया ।
एक दौर था जब, आंखों से सही
पूछ लिया करते थे हमारा हाल ।
अब ये बहाना भी खैर,
एक बहाना हो गया ।
मधुर द्विवेदी
पहलू
कुछ कहते हैं मैन चाइल्ड ।
कैसे बताऊं दोनों को,
की गंगाधर ही शक्तिमान है ।
और दीवारों पर एशियन पेंट के साथ,
ये वही पुराना मकान है ।
मधुर द्विवेदी
ओल्ड सोल - Old Soul
मैन चाइल्ड - Man Child
टोबा टेक सिंह
कई बिशनसिंह यहां पर ।
उनमें से एक मैं भी हूँ,
ढूंढ रहा हूँ अपना टोबा टेक सिंह ।
कभी घूमता हूँ गोल गोल
धर्म की चक्की पर,
अटक जाता हूँ कभी
महंगाई की सुई पर ।
राह फिर भी नज़र आती नहीं
तो कदमों के नीचे की ज़मीन को ही
मान लेता हूँ टोबा टेक सिंह ।
और खड़ा रहता हूँ दिन रात,
अच्छे दिनों को याद करते हुए ।
मेरे पागलपन पर,
दोनों ओर के पहरेदार हंस रहे हैं
जी भर कर फब्तियां कस रहे हैं ।
मिज़ाज़ के भी दोनों बड़े सख़्त हैं,
जानते हैं कि 2024 में अभी वक़्त है ।
लेकिन भूल जाते हैं ये लोग
कि मैंने हार नहीं मानी है ।
भले मिटा दिया हो इन्होंने
कागज़ के पन्नों से पर,
ज़िंदा है वजूद टोबा टेक सिंह का,
मेरा यकीन जब तक बाकी है ।
और एक दिन ये पागलपन मेरा
इंक़लाब जरूर लाएगा,
उस दिन हर एक बिशनसिंह,
अपने गाँव ज़रूर पहुंच जाएगा ।
मधुर द्विवेदी
(आदरणीय दादाजी डॉ. चंद्रकांत द्विवेदी जी को समर्पित)
अपने गाँव ज़रूर पहुंच जाएगा ।
मधुर द्विवेदी
(आदरणीय दादाजी डॉ. चंद्रकांत द्विवेदी जी को समर्पित)
सआदत हसन मंटो की कहानी टोबा टेक सिंह से प्रेरित
Labels:
India,
Manto,
Pakistan,
Saadat Hasan Manto,
Toba Tek Singh,
vibhajan
Friday, July 2, 2021
खरीद लिए हैं
खरीद लिए हैं अखबार ।
घर बैठे फैल रहा है,
डर बेचने का व्यापार ।
2 रुपये में ट्वीट बिक रही है,
2 करोड में सीट मिल रही है ।
चलो कहीं तो मिल रहा है,
लोगों को रोजगार ।
थोड़ा सा हो रहा है,
तो होता रहे अनाचार ।
मधुर द्विवेदी
Subscribe to:
Posts (Atom)